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दिया जलता रहे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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यह ज़िन्दगी का कारवाँ ,इस तरह चलता रहे ।

हर देहरी पर अँधेरों में दिया जलता रहे ॥

आदमी है आदमी तब ,जब अँधेरों से लड़े ।

रोशनी बनकर सदा ,सुनसान पथ पर भी बढ़े ॥

भोर मन की हारती कब ,घोर काली रात से ।

न आस्था के दीप डरते ,आँधियों के घात से ॥

मंज़िलें उसको मिलेंगी जो निराशा से लड़े ,

चाँद- सूरज की तरह ,उगता रहे ढलता रहे ।

जब हम आगे बढ़ेंगे , आस की बाती जलाकर।

तारों –भरा आसमाँ ,उतर आएगा धरा पर ॥

आँख में आँसू नहीं होंगे किसी भी द्वार के ।

और आँगन में खिलेंगे ,सुमन समता –प्यार के ॥

वैर के विद्वेष के कभी शूल पथ में न उगें ,

धरा से आकाश तक बस प्यार ही पलता रहे ।

24-4-2007