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कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए / ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

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कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए
कि अपने हक़ में भी हमवार हो लिया जाए

वो जिस ने ज़ख़्म लगाए रखेगा मरहम भी
उसी का दिल से तरफ़-दार हो लिया जाए

यही है नींद का मंशा कि ख़्वाब-ए-गफ़लत से
सही वक़्त पे बेदार हो लिया जाए

गिरह-कुशाई-ए-मौज-ए-नफ़स बहाना है
कि इस बहाने से उस पार हो लिया जाए

किसी की राह में आने की ये भी सूरत है
कि साए के लिए दीवार हो लिया जाए