Last modified on 7 सितम्बर 2013, at 22:07

ऐ लड़की-5 / देवेन्द्र कुमार देवेश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 7 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र कुमार देवेश |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऐ लड़की,
कैसे चली आई थी तुम
थामकर मेरा हाथ
मेरे पीछे
विदा वेला में हँसते–मुस्कराते-
मॉं–बाप, भाई–बहन,
बंधु–बांधव, सखी–सहेलियॉं,
पास–पड़ोस और गाँव–जवार
जबर्दस्ती रोने की करते हुए
जबर्दस्त कोशिश के साथ
प्रतीक्षारत था
दान की गई बछिया का
करुण रुदन सुनने को।
बेटी–विदाई के अवसर पर होनेवाले
पारंपरिक, बहु प्रचलित और
सर्वापेक्षित विलाप को
अपने होंठों की मुस्कान में समेटकर
किस भरोसे पर जज्ब किया था
तुमने अपने भीतर?
किस पर विश्वास था तुम्हें सबसे ज्यादा?
अपनी प्रार्थनाओं पर,
मुझसे लिए गए सात वचनों पर,
हथेली पर गहरे लाल उग आई मेंहदी पर
अथवा मुझे परखकर लिए गए अपने फैसले पर?