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ख़ुश्क ज़ख़्मों को कुरेदा जाएगा / ताहिर वारसी
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ख़ुश्क ज़ख़्मों को कुरेदा जाएगा
दश्त में दरिया को ढूँढा जाएगा
याद-ए-माज़ी इक तिलिस्मी ग़ार है
मुड़ के जो देखेगा पथरा जाएगा
तर्क-ए-मय अज़-राह-ए-तौबा कर भी लूँ
कोई बादल आ के बहका जाएगा
ज़लज़ले सब ईंट पत्थर खा गए
रेत का अब घर बनाया जाएगा
हाल-ए-दिल ‘ताहिर’ सँभाल कर कह ज़रा
लफ़्ज़ को मआनी से तौला जाएगा