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डर / कुमार अनुपम
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अचानक एक दिन हुआ ऐसा कि
बुद्धू मास्टर का नाम लतीफ मियाँ में तब्दील हुआ
उनके सिले कपड़ों से निकलकर आशंका की चोर-सूइयाँ
चुभने लगीं हमारे सीने में
हमारी अम्मा की बनाई लजीज बड़ियाँ
रसीदन चच्ची की रसोई तक जाने से कतराने लगीं
घबराने लगीं हमारी गली तक आने से उनकी बकरियाँ भी
सविता बहिनी की शादी और
अफजल भाई के घर वलीमा एक ही दिन था
यह कोई सन 92 की रात थी
किसी धमाके का इंतजार दोनों तरफ हुआ