भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हंसना-रोना / अशोक चक्रधर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 9 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक चक्रधर |संग्रह=बोलगप्पे / अशोक चक्रधर }} जो रोया<br> ...)
जो रोया
सो आंसुओं के
दलदल में
धंस गया,
और कहते हैं,
जो हंस गया
वो फंस गया
अगर फंस गया,
तो मुहावरा
आगे बढ़ता है
कि जो हंस गया,
उसका घर बस गया।
मुहावरा फिर आगे बढ़ता है
जिसका घर बस गया,
वो फंस गया !
....और जो फंस गया,
वो फिर से
आंसुओं के दलदल में
धंस गया !!