भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुकूल वातावरण / दुष्यन्त कुमार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 9 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त कुमार |संग्रह=आवाज़ों के घेरे / दुष्यन्त कुम...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उड़ते हुए गगन में
परिन्दों का शोर
दर्रों में, घाटियों में
ज़मीन पर
हर ओर...

एक नन्हा-सा गीत
आओ
इस शोरोगुल में
हम-तुम बुनें,
और फेंक दें हवा में उसको
ताकि सब सुने,
और शान्त हों हृदय वे
जो उफनते हैं
और लोग सोचें
अपने मन में विचारें
ऐसे भी वातावरण में गीत बनते हैं।