भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ई हमार गीत सब / रिपुसूदन श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:33, 1 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रिपुसूदन श्रीवास्तव |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ई हमार गीत सब मीत हो तहार बा।
नेह के दिया हिया भरि गइल अँजोर से,
आज हीत-दुश्मन सब बन्हल एक डोर से।
रूप के किरिन अजब अलख जगा के छिप गइल,
बहि गइल कलुष तमाम एक बूँद लोर से।
व्यर्थ ई विचार का तहार, का हमार बा।
मुस्कुरा के झेलीले जीत हो कि हार हो ;
अब त नाव बढ़ि चलल तीर हो कि धार हो,
जिन्दगी बेआर के बेसम्हार झोंका ह
मुस्कुरा के चूमि ली फूल हो कि खार हो।
सफर के पड़ाव पर हर घड़ी बहार बा।
दरद सृष्टि में बड़ा पुरान नेह- नाता ह,
हाथ में कलम, हिया में पीर-ऊ विधाता ह।
गीत के चरन अभाव, नेह-बरन बन जाला
हर हँसत निगाह ताल-छंद के जन्मदाता ह।
करम के दुआर पर प्रीत के गोहार बा।
ई हमार गीत सब मीत हो तहार बा।