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मन की ऊँची चहारदीवारी / यश मालवीय
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मन की ऊँची चहारदीवारी
चलो इसे दो क्षण में लाँघ लें
घास पर चलें
खुसुर-पुसुर करें
बात-बात पर
नाही-नुकुर करें
अँजुरी में चेहरा महसूस करें
हर खिड़की पर चंदा टाँग लें
छुट्टी का दिन
देखें बंद घड़ी
चाभी देने की
अब किसे पड़ी
लमहा-दर-लमहा डायरी लिखें
कोई तो बड़ा काम नाँध लें
चौपड़ पर
बिखरायें गुट्टियाँ
जीत-हार की
सौ-सौ चुट्टियाँ
चले छेड़खानी का सिलसिला
आपस में कुछ दें कुछ माँग लें