भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच नहीं लगता / शशि सहगल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:06, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=कविता ल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे सच नहीं लगता
माँ कभी मगरमच्छ के आँसू नहीं रोती
रोती है उसकी विवशता।
देवरारू-सा पिता
अपने में तना हुआ
झील में गहराई नापता है।
ओस की बूँद का अस्तित्व
क्षण में समाप्त हो जाता है
हज़ारों साल की उम्र
उस पल शरमा जाती है।