भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण
मानखो तो मून प्रीत’ई गूंगी है
सामीं छाती घाव पीड डूंगी है
लीर-लीर हुई जावै आंख फाड देख
दादू री दोवटी रहीम री लूंगी है
छोड बाम्बी ठाटसूं सांप घूमै हाट में
गतागूम जोगीजी वस हुई पूंगी है
बात तो है सांच सांच नै आंच कठै
मौत साव सस्ती जिंदगाणी मूंघी है