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मीणधर सरप / कन्हैया लाल सेठिया

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मन,
मिन्धर सरप
मेले मांझल रात
मिण अलघी,
करें बीं री जोत में
चुग्गो पाणी,
सो ज्यावे बीं खीण
म्हारी चेतना
रह ज्यावे
हाथ में ही
ज्ञान रो गोबर
जांगू'र पिसतावूं
फेर कठे मिण !