भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुग-भीष्म !/ कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:00, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चनण रै वन में
सैल कर‘र
मुड़ग्यो पाछो
उतराधो
सूरज रो रथ,
किचरीजग्यो
घोड़ां री टापां स्यूं
हिमाळै रो गरब,
घालण लागगी डील
साव माड़ी नदयां,
जलमण लागग्या
बगत रै घरां
डीघा दिन‘र बावनीं रातां,
निसरग्या बारै
धरती री कैद तोड‘र
बागी बीज,
साम लियो सिर
पगां तळै चिंथीज्योड़ी दूब,
पीड़ा‘र अभावां री
सेज पर सूतो
जुग रो भीषम
अडीकै हो
आ ही पुळ घड़ी
अबै इन्छ‘र छोडैलो
आप रौ खोळियो