Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 07:38

निज विवेक में जाग / कन्हैया लाल सेठिया

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:38, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं ही कारण
मैं ही कर्ता
मैं विकार
अविकार,
मैं ही बन्धन
मैं ही मुगती
दूजो कुण भरतार ?

जै बरसाऊं
म्हारै ऊपर
म्हारी करूणा धार,
मिटै देह रो ताप
हुवै निज
आतम रो उपगार !
जिंयां काच में
दिखै आप रो बिम्ब
बिंयां हियै रै
राग धेख रो
दूजा में प्रतिबिम्ब,

चावै जे
अणभूत्यो इण नै
मन विवेक में जाग,
कोनी फिरै
भटकतो मिलसी
सत रो सहज सुराग !