भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आतमा रो मोल / गौरीशंकर प्रजापत
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:03, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौरीशंकर प्रजापत |संग्रह= }} [[Category:म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एकटक
देखतो हो म्हैं
जगती उणरी
माटी री काया नैं।
काया जिण मांय
हो काल तांई वासो
इणरी आतमा रो।
चारूंमेर सोग मांय दीसै
उणरा घरवाळा
जिका देया करता हा
फगत अर फगत ओळमा-ताना
ऊमर भर इणनैं....
आज रोवै वै किणनैं
इण माटी नैं
का उण आतमा नैं....
आं लोगां रो रोवण
छेकड़ किण खातर
बखाणै जिका गुण
वै किण रा हा
छोडगी जिको सरीर
उण आतमा रा
का सिळगै लाय में
आ माटी उण रा!
सरीर रो कीं मोल कोनी
मोल होवै आतमा रो।