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चीड़ी चीड़ो / कन्हैया लाल सेठिया

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कोनी देख्यो
कदेई एकली
चिड़कली नै
घाळतां आळो !
उड़तो रवै ओळूं दोळूं
बीं रो मोट्यार चीड़ो,
पण करै
सिरजण सारू
घण करी‘क खेचळ चीड़ी
निभावै चीड़ो तो
कणाईं ल्यार
एकाध घोचो
संसार रो बैवार
पण चिड़कली री
आंख्यां में
एक भविस रो सपनो
एक अनदेखी साच,
जकी कोनी लेण देवै
चनेक ही
कोई जामण नै जक !