भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साच..! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:41, 19 अक्टूबर 2013 का अवतरण
टूटग्यो
आंख्यां रो भरम
अबै तो लागै
ओ संसार
एक अणहूणी
जकै में
निरथक है सोचणी
व्यवस्था री बात
चाळणो पड़सी
नारा उछाळती
भीड़ रै रेळै रै सागै
जकै में
कोई कोनी समझै
किण नै ही
ओळखणै री जरूरत !