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रेत री पुकार (कविता) / मंगत बादल
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थे कदी सुणी है-
रेत री पुकार
तिस मरती रेत री
पाणी जठै
एक सोवणो सुपनो है
हारी-थाकी आंख्यां रो ।
एक-एक बूंद तांई तरसती
फेफी जम्यां होटां पर जीभ फिरांवती
रेत रो
पाणी सूं कितणो हेत हुवै
थे स्यात कोनी जाणो ।
आभो तकती आंख्यां में
मेह सूं कितणो नेह हुवै
ऐ खेजड़ा अर फोगला जाणै
या जाणै रोहिड़ो
जिको काळी-पीली आंधी में बी
मुळकतो-मुळकतो गीत गा देवै
रेत री संवेदनशीलता रा
रेत –
कोरी रेत नईं है
बठै बी थानै
रंगीन कल्पनावां मिलसी ;
जिकै दिन आ रेत
अंगड़ाई लेसी
इतिहास बदळ ज्यावैलो
थे देखता रहज्यो
अठै बी
नुंईं-नुंईं कळियां खिलसी ।