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उत्तर नहीं हूँ / धर्मवीर भारती

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उत्तर नहीं हूँ

मैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !


नये-नये शब्दों में तुमने

जो पूछा है बार-बार

पर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैं

प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !


तुमने गढ़ा है मुझे

किन्तु प्रतिमा की तरह स्थापित नहीं किया

या

फूल की तरह

मुझको बहा नहीं दिया

प्रश्न की तरह मुझको रह-रह दोहराया है

नयी-नयी स्थितियों में मुझको तराशा है

सहज बनाया है

गहरा बनाया है

प्रश्न की तरह मुझको

अर्पित कर डाला है

सबके प्रति

दान हूँ तुम्हारा मैं

जिसको तुमने अपनी अंजलि में बाँधा नहीं

दे डाला !

उत्तर नहीं हूँ मैं

प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !