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सब का अपना आकाश / त्रिलोचन

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शरद का यह नीला आकाश

हुआ सब का अपना आकाश


ढ़ली दुपहर, हो गया अनूप

धूप का सोने का सा रूप

पेड़ की डालों पर कुछ देर

हवा करती है दोल विलास


भरी है पारिजात की डाल

नई कलियों से मालामाल

कर रही बेला को संकेत

जगत में जीवन हास हुलास


चोंच से चोंच ग्रीव से ग्रीव

मिला कर, हो कर सुखी अतीव

छोड़कर छाया युगल कपोत

उड़ चले लिये हुए विश्वास