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बच्चे और होम वर्क-1 / महेश चंद्र पुनेठा

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क्या-क्या नहीं बुन रहे होते हैं बच्चे
छुट्टियों को लेकर
पढ़ेंगे ढेर सारी
नई-नई कहानियाँ
चुटकुले / पहेलियाँ
बनाऐंगे बहुत सारे चित्र
इकट्ठा करेंगे
तरह-तरह की चीज़ें
खेलेंगे खेल ही खेल
अपने साथियों के साथ
जाएँगे दादा-दादी के पास गाँव
सुनेंगे पुराने किस्से-कहानियाँ
घूमेंगे खेतों-खलिहानों में
जंगल और दुकानों में
देखेंगे तरह-तरह के पेड़
तरह-तरह की पत्तियाँ
तरह-तरह के फूल
तरह-तरह की चिड़ियाँ
वाह! कितना आनंद आएगा पर
खेल रहे होते हैं जब वे
अपने दोस्तों के साथ
या घूम रहे होते हैं
दादा जी के साथ
या पढ़ रहे होते हैं
मनपसंद कहानियाँ / कविताएँ
पूछ लेती है मम्मी-
बेटा ! पूरा हो गया क्या गृह-कार्य
या फिर देख रहे होते हैं जब
अपना कोई पसंदीदा सीरियल
घन-घना उठती है फोन की घण्टी
पूछते हैं पापा--
बेटा!कैसे हो?
होम वर्क कर रहे हो ना !
सिहर उठते हैं बच्चे
फिर लग जाते हैं
होम वर्क पूरा करने में
हो जाता है जब एक विषय का काम पूरा पूछो मत,
कितना राहत महसूस करते हैं बच्चे
जैसे स्कूल में आए
अधिकारी के लौटने पर गुरुजी
पर जल्दी ही याद आती है उन्हें

अभी तो बचा है ढेर सारा काम
अन्य विषयों का फिर से लग जाते हैं

होम वर्क पूरा करने में अनिच्छा से
बीत जाती हैं उनकी छुट्टियाँ
यूँ ही काम के बोझ से दबे-दबे
स्कूली दिनों की तरह
और फिर एक दिन
बीत जाता है बचपन यूँ ही ।