भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं मिटटी का ठीकरा / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 26 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>अय माँ … ! मैं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अय माँ … !
मैं मिटटी का ठीकरा
किसी ने मारी ठोकर अय माँ
किसी के पैरों तले रुल गई
अधखिली सी धूप भी माँ
आ मेरे आँगन सूख गई
टंगा है मेहराबों पर
रेतीले सपनों का सेहरा
अय माँ ! मैं मिटटी का ….
अन्दर बाहर
कातिल आवाजें
जहरीले साँपों के दंश
सिरहाने कांपती हवाएं
अँधेरे कमरों के अंश
उम्र यह नागफनी सी
ज़ख्म पल - पल है गहरा
अय माँ ! मैं मिटटी का ….
ढोऊँ किस तरह
अँधेरी गलियों का सूनापन
किसी रेतीले से टीले का
ढहता वह दमघोटू क्षण
टूटती - जुड़ती
जुड़ती - टूटती
उलझी लकीरों का
है हाथों पर पहरा
अय माँ ! मैं मिटटी का ….