भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलो हम आज / मानोशी
Kavita Kosh से
Manoshi Chatterjee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:15, 31 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('<poem>चलो हम आज सुनहरे सपनों के रुपहले गाँव में घर बसाय...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चलो हम आज
सुनहरे सपनों के
रुपहले गाँव में
घर बसायें ।
झिलमिल तारों की बस्ती में,
परियों की जादूई छड़ी से,
अपने इस कच्चे बंधन को
छूकर कंचन रंग बनायें।
चलो हम आज...
तुम्हारी आशा की राहों
पर बाँधे थे ख्वाबों से पुल,
आज चलो उस पुल से गुज़रें
और क्षितिज के पार हो आयें।
चलो हम आज...
उस दिन चुपके से रख ली थी
जिन बातों की खनक हवा ने,
रिमझिम पड़ती बूँदों के सँग
चलो उन स्मृतियों में घूम आयें।
चलो हम आज...
बाँधी थीं सीमायें हमने
अनकही सी बातों में जो,
चलो एक गिरह खोल कर
अब तो बंधनमुक्त हो जायें।
चलो हम आज
सुनहरे सपनों के
रुपहले गाँव में
घर बसायें ।