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ख़ाक देखी है शफ़क़ ज़ार-ए-फ़लक देखा है / अहमद रिज़वान

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ख़ाक देखी है शफ़क़ ज़ार-ए-फ़लक देखा है
ज़र्फ़ भर तेरी तमन्ना में भटक देखा है

ऐसा लगता है कोई देख रहा है मुझ को
लाख इस वहम को सोचों से झटक देखा है

क़ुदरत-ए-ज़ब्त भी लोगों को दिखाई हम ने
सूरत-ए-अश्क भी आँखों से छलक देखा है

जाने तुम कौन से मंज़र में छुपे बैठे हो
मेरी आँखों ने बहुत दूर तलक देखा है

रात का ख़ौफ़ नहीं घटता अंधेरा तो कुजा
सब तरह-दार सितारों ने चमक देखा है

एक मुद्दत से उसे देख रहा हूँ ‘अहमद’
और लगता है अभी एक झलक देखा है