भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब कभी / अर्चना भैंसारे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 3 नवम्बर 2013 का अवतरण
और जब कभी
मैली हो जाती रुह
तब याद आती
तुम्हारे मन में बहते
मीठे झरने की
कि जिसमें डूबकर
साफ़ करती हूँ आत्मा अपनी।