भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे बाद आ / ऐन रशीद
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:54, 3 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ुबैर फ़ारूक़ }} {{KKCatNazm}} <poem> बदलेगा र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बदलेगा रंग शाम-ए-आलम
मेरे बाद आ
होगा ज़रा सा दर्द भी कम
मेरे बाद आ
तन्हाइयाँ भी अपनी हैं
अपनी हैं साअतें
ख़ुद-साख़्ता हैं सारे ये ग़म
मेरे बाद आ
ख़्वाबों के इस मुंडेर से देखा किए मुझे
ये और बात है कि हुई चश्म मेरी नम
नमनाकियों की बात ख़त्म
मेरे बाद आ
हरियालियों की भीड़
मगर दुख की काश्त है
बदलेगा रंग रंग-चर्ख़-ए-कुहन
मेरे बाद आ