भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेड़-3 / अशोक सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 10 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहाड़ पर रहने से
पेड़ का दिल पत्थर नहीं हो जाता
और न ही विषधर के लिपटे रहने से विषैला

बभनटोली में हो या चमरटोली में
पेड़, पेड़ ही रहता है
वह पंडिताई का दम्भ नहीं भरता
और न ही चमरौंधी की हीनता आती है उसमें

पेड़ कभी जाति नहीं पूछते
और न ही किसी का धर्म जानने की
होती है उसमें जिज्ञासा
चाहे मुसलमानों के मुहल्ले में रहे या हिन्दुओं के !