भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़-4 / अशोक सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 10 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
यह सच है कि
आदमी की तरह उसकी आँखे नहीं होती
पर इसका मतलब यह तो नहीं कि
पेड़ अन्धे होते हैं, कुछ देख नहीं सकते
सुन नहीं सकते, बोल नहीं सकते
हँस-गा नहीं सकते, रो नहीं सकते पेड़ ?
अगर तुम ऐसा मानते हो
तो क्षमा करना
पेड़ों का मानना है कि तुम आदमी नहीं हो !