हे मेरी तमहारिणी : दूसरा अवतरण / प्रेमचन्द गांधी
कविप्रिया का यह स्मरण या कि शब्द-स्तवन वर्षा ऋतु में लगभग नियमित रहा है, रोज़ ही कुछ ना कुछ इसमें जुड़ता रहा है। जैसे कोई सच्च आस्तिक नियम से सुबह उठते ही स्नान-ध्यान करते हुए अपने ईश्वर को याद करता है, मेरे जैसे घोर नास्तिक व्यक्ति ने अपनी कविप्रिया को बिला नागा यह भावांजलि प्रस्तुत की है। करीब तीन महीने में लिखी गई काव्य शृंखला का यह दूसरा भाग है। पहले भाग से यह सिर्फ इसी रूप में अलग है कि इसमें एक अलग किस्म का नैरंतर्य भी है और एक किस्म की छंदमयी रचनाशीलता भी।
-प्रेमचन्द गांधी
1.
पूरे सावन
तेरा गायन
साँसों में बजती
तेरी पायल-किंकिणी
हे मेरी तमहारिणी
2.
मेरी आँखों में
नमी रह गई
शायद प्यार में मुझसे
कुछ कमी रह गई
कपोलों पर तेरे
मेरे अधरों की नमी रह गई
3.
लहराकर बरसती है घटा
मुझ पर ऐसे
तुमने बरसा दिए हों
अनवरत चुम्बन जैसे
4.
मैंने वक़्त के कहारों से कहा,
’ज़रा आराम से ले जाना,
ये उसकी यादों की पालकी है ।‘
मैं तुम्हारी याद को भी
तकलीफ़ में नहीं देख सकता ।
5.
हमारा प्रेम एक रूपक है
अपने भीतर रहस्यों की
एक अनन्त शृंखला समेटे हुए
इसे रूपक ही रहने देंगे हम
वक्तव्य बनते ही
निरावृत हो जाता है सब कुछ
प्रेम से बड़ा कोई आवरण नहीं
तुम्हीं तो कहती हो
हे मेरी तमहारिणी ।
6.
सावन में बदली बन जब तुम
पानी की पायल पहने आती हो
समूची कायनात
तुम्हारी बूँदों की लय में नाचने लगती है
और मैं बस टुकुर-टुकुर देखता हूँ
तुम्हारा विहँसना
7.
तुम अच्छी हो
कहना अच्छा लगता है
बारिशों के मौसम में तो
तुम्हारा हर इक रूप अच्छा लगता है
8.
कहां तिमिर है इस दुनिया में
जब तक तुम हो मेरे साथ
काल की कालिमा कलपती रह जाती है
जब तुम थाम लेती हो मेरा हाथ ।
9.
मेरे आँसुओं के
तीन-चौथाई खारे जल से घिरी
हरे वसन में लिपटी तुम
मेरी नीली वसुन्धरा हो
10.
मेघों से मुझ तक आती हैं
बारिश की बूँदें ऐसे
तुम्हारे दिल से निकल कर
आते हैं मेरे होठों तक चुम्बन जैसे
11.
अरे मोगरे
तू ही भोग रे
उसकी चितवन
मन का उपवन
उसके बालों में सजकर
अपनी ख़ुशबू से उसे महकाते रहना
मेरी यादों से उसे बहलाते रहना
हरी रहे तेरी कोख रे
ओ रे हरे मोगरे
12.
तुम्हारे ही कारण
जीवन में सम्भव हुआ प्रेम
तुम्हारे ही कारण
सम्भव हुई बेहतरीन कविताएँ
तुम ना होतीं तो कहां से होता मैं कवि
13.
न दिखती हो
ना आती हो
कहाँ चली जाती हो
तुम्हारी ये नाराज़गियाँ उफ्फ...
यही हाल रहा ना तो देखना
मुझे सच में तुमसे प्यार हो जाएगा
अब आ भी जाओ कि
ये बदन सुलगता है
धरती की तरह
मेरी प्यारी बरखा रानी
हे मेरी तमहारिणी
14.
काली घटाओं की तरह छाते हैं
तेरी यादों के घनेरे बादल और
बिन बरसे चले जाते हैं
जैसे तेरे आने-मिलने के कौल-ओ-क़रार
15.
आह... तेरे हाथ पके
खाने का जायका लज़ीज़तर
और पीले निशान सब्ज़ी के कमीज़ पर
याद पर तेरी रीझ कर
पहनता हूं वही कपड़े तो
दिल का सुग्गा कहता है
‘मोहब्बत तो ठीक है लेकिन
पैरहन में कुछ तो तमीज़ कर’
16.
नहीं लिए जा सके
एक चुम्बन की आरज़ू का परिन्दा
फड़फड़ाता है
तुम्हारी मुण्डेर पर बैठा-बैठा
सावन की फुहारों में भीगते
उस परिन्दे को
नेह का चुग्गा डालो
तो इधर भी बरसे मेह...
17.
तुम्हारी कामना
कोई अपराध नहीं
अगर हो
तो भी कुछ ज़ुर्म
किए जाने चाहिए...
18.
सूखे सावन में
हँसता हुआ अमलतास
जैसे विपदाओं के बीच
पलता-बढ़ता
हमारा प्यार और विश्वास
हे मेरी तमहारिणी
19.
धाराधार बरसते
पानी के संगीत में
ख़याल आता है कि
शायद ऐसे ही बजता है
द्रुत में
उन्मत्त आनन्द का संगीत
20.
कभी-कभी तो
इतनी जल्दी में होती है बारिश
जैसे बहुत-सारे कामों के बीच
एक साथ व्यस्त तुम
हँसती हुई चल देती हो
जड़कर कुछ
त्वरित तड़ातड़ चुम्बन
21.
घिर-घिर आते मेघ रे
प्यार से अम्बर देख रे
यह जो चमकता हुआ चमत्कार है
कुछ नहीं बस
नभ में छाई है उसकी मेखला
सूखे अधरों पर बुदबुदाती है
नेह में सीली हुई एक प्रार्थना
टप-टप गिरती बूँदों के संगीत में तुम
प्रेमपंथ का गीत गाते चलो एकला
बादलों की झिरी से दिखती
सूर्य-किरणों सी हँसती उसकी रेख रे
घिर-घिर आते मेघ रे...
22.
कहाँ-कहाँ उगा लेती हो
तुम भी मनी-प्लान्ट
बोतलों से लेकर गमले तक में
हर तरफ़ लहराती है
तुम्हारे मन की हरियाली
तुम्हारे मन का मनी-प्लान्ट
कभी अहसास नहीं होने देता
घर में अभावों का...
23.
एक हरे-भरे दृश्य की चाह में
हम पटरियों के दोनों बाजू
एक-दूसरे के साथ चलते रहे
किसी रेल में बैठ जाते तो
शायद किसी जगह पहुँच जाते
क्या कोई ऐसी जगह थी
इस पृथ्वी पर
जहाँ हमें
कल्पवृक्ष के जोड़े की तरह
साथ होना था ।
24.
ज़िन्दगी के इक मोड़ पर
तुम्हारे प्यार का एक बगीचा मिला
अब तुमसे लिपट कर
बचपन के वो हरे-भरे
दरख़्त याद आते हैं
जिनकी छाँवों में पल कर
मैं बड़ा हुआ
अब मेरी ज़िन्दगी
तुम्हारे साथ के पेड़ तले ही गुज़रनी है
हे मेरी तमहारिणी...
25.
जिन आँखों में है
ज़िन्दगी की वो रोशनी
जो सारा कल्मष हर लेती है
उन आँखों के सायबान में
चिन्ताओं की काली रेखाएँ
मुझे नहीं सुहाती हैं
चलो
तुम्हारी लट के
सफ़ेद बाल की तरह
इसे भी उखाड़ फेंकता हूँ मैं
26.
प्यार में चुहल तो ठीक है
पर शैतानी नहीं
अब तुम्हीं कहो
हरी चूडि़यों के लाल निशान लेकर
मैं कैसे जाऊँ काम पर
सुनो,
आज मौसम बहुत अच्छा है
पूरे दिन बरसात होगी
चलो आज की छुट्टी कर लेता हूँ
तुम्हारी मोहब्बत का मरहम
कल तक शायद
जाने लायक कर देगा ।
27.
आज मैंने हरी-भरी पहाड़ी से
बादल को ऐसे लिपटते देखा जैसे
तुम अपना आँचल लहराकर
लिपट जाती हो मुझसे
हे मेरी तमहारिणी...
28.
और कितना सजाओगी
अपनी सज़ाओं से मुझे
प्यार की सूली पर लटका हूं मैं
ऊपर से नीचे तक
तुम्हारे असँख्य चुम्बनों में पैबस्त