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प्रतीक्षा / सिद्धेश्वर सिंह

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धूप के अक्षर
अँधेरी रात की काली स्लेट पर
आसानी से लिखे जा सकते हैं
कोई ज़रूरी नहीं कि तुम्हारे हाथों में
चन्द्रमा की चॉक हो ।

इसके लिए मिट्टी ही काफ़ी है
वही मिट्टी
जो तुम्हारे चेहरे पर चिपकी है
तुम्हारे कपड़ों पर धूल की शक्ल में ज़िन्दा है
तुम्हारी सुन्दर जिल्द वाली क़िताबों में
धीरे-धीरे भर रही है।

तुम सूरज के पुजारी हो न ?
तो सुनो
यह मिट्टी यूँ ही जमने दो परत-दर परत ।

देख लेना
किसी दिन कोई सूरज
यहीं से, बिल्कुल यहीं से
उगता हुआ दिखाई देगा
और मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा ।