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हादसे का एक दिन / परमानंद श्रीवास्तव

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एक दिन ऐसे ही गिरूँगा टूटकर
महावृक्ष के पत्‍ते-सा
कुछ पता नहीं चलेगा
निचाट सुनसान में

चीख़ फट पड़ेगी बाहर
झूल जाऊँगा रिक्‍शे से

लिटा दिया जाएगा ख़ुरदुरी ज़मीन पर
क्‍या यह अन्त से पहले का हादसा है

ग़नीमत कि बेटी साथ थी
उसके जानने वाले थे
बिसलरी का पानी था देर से सही
समय बताता नहीं कि दिन पूरे हो रहे हैं
चींटी तो जानती है अपना गन्तव्‍य
न हम चुप रह पाते हैं
न बोल पाते हैं

आज ही भारत बन्द होना था
सिटी-मॉल बंद
बुक-कार्नर बंद
चिकित्‍सक का क्लिनिक बंद

कभी ऐसा ही हुआ था
निजामुद्दीन-गोवा एक्‍सप्रेस में
बारिश है कि रुकने का नाम नहीं ले रही
ख़बर है कि मुम्बई में नावें चल रही हैं

अनहोनी अब एक फ़िल्‍म का नाम है