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सुबह-सुबह सूरज ने पूछा / धनंजय सिंह

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सुबह-सुबह सूरज ने पूछा
कहाँ बिताई रात कहो

कोई रचना आ चुपके से
कानों में बतियाई
या कि नए भावों की कोई
आहट पड़ी सुनाई
क्या कोई ऐसा विचार था
जिसने नींद उडाई
या फिर परी-लोक की छवि
सपनों में रही समाई

या कि राह में अड़ा रहा
मन का कोई आघात कहो.

कोई गीत नहीं रच पाए
क्या करते रहते हो
जगत-दिखावे को ही क्या
कागज़ काले करते हो
क्या मंचों पर ताली बजवाना
है चाह तुम्हारी
सच-सच बोलो क्या है
रचनाओं की राह तुम्हारी

क्यों मन करता तुम पर ऐसे
प्रश्नों की बरसात कहो.

उतर कहीं से आया कोई
मन में धीरे-धीरे
या कि कहीं मिल गए भाव के
उज्ज्वल मोती-हीरे
नूतन बिम्ब उभर कर कोई
शब्दों में आया है
या फिर कोई गीत
जन्म लेने को अकुलाया है

यदि ऐसा है तो फिर उसको
हँस कर 'शुभ सुप्रभात' कहो !