भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शाम की पुरवाई / अलीना इतरत
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 20 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलीना इतरत }} {{KKCatNazm}} <poem> आज परवाज़ ख़...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आज परवाज़ ख़यालों ने जुदा सी पाई
आज फिर भूली हुई याद किसी की आई
जिस्म में साज़ खनकने का हुआ है एहसास
और बजने लगी सरगम सी कहीं ज़ेहन के पास
मेरी ज़ुल्फ़ों ने बिखर कर कोई सरगोशी की
कैसी आवाज़ हुई आज ये ख़ामोशी की
तेरी आहट तिरा अंदाज़ जुदा है अब भी
तू ही दुनिया-ए-मोहब्बत की सदा है अब भी
इस तसव्वुर पे ‘अलीना’ को हँसी आई है
ये कोई और नहीं शाम की पुरवाई है