Last modified on 24 नवम्बर 2013, at 13:03

एक बजे के बाद. / व्लदीमिर मयकोव्स्की

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 24 नवम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(आत्महत्या के बाद मायकोवस्की की पतलून की जेब से यह अधूरी कविता मिली थी)

एक बजे के बाद तुम ज़रूर सो चुके होंगे।
बहती है रात की आकाशगंगा, एक रजत धारा की तरह ।
जल्दी नहीं ।
कुचलते हुए तुम्हारे सपनों को, त्वरित तार भेज कर
खलबली पैदा करता तुम्हारे सर में
मैं नहीं जगाऊँगा तुम्हें ।

जैसा कि कहते हैं वे, यही है अन्त कहानी का
ज़िन्दगी की चट्टानों से टकरा कर
चकनाचूर हो चुकी है
प्यार की नाव ।

हम अलग हो चुके हैं और हमें ज़रूरत नहीं
आपसी चोटों, अपमान और दुखों की फ़ेहरिस्त की।
और देखो
संसार कैसा गुमसुम पड़ा है
आकाश अपने बटुए से अदा करता है रात
अनगिनत तारों के साथ ।

ऐसे समय में कोई उठता है
सम्बोधित करता
समय और इतिहास और अखिल ब्रह्माण्ड को !

1930