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असळाक / कन्हैया लाल सेठिया

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जे हुज्यावै
मिनख जिंयां
पळगोड़ कुदरत
तो कोनी उगै
बेळयां सर सूरज,
कोनी बरसै
रूत में बादळ,
कोनी खिलै
टोटळीज्योड़ा पुसब,
कोनी पाकै
घोटां पोटां आयोड़ा धान,
जीव रो मोटो बैरी
असळाक
बो कर सकै जीवण नै
गत हीण
 पण कोनी ढाब सकै
आती मौत !