उठाली
बंसरी रै
भोळै
मैं कलम,
अडीकती रही
विरहण गोप्यां
कद सुणीजै
कानूड़ै री टेर
फेर हू’र
आघती
बैठगी ले’र
बैलोवणो,
भेज्या मैं
लिख लिख’ र गीत
पण बै तो
सुरग्यानी
निरथक हा
बारै वासतै
सबद !
उठाली
बंसरी रै
भोळै
मैं कलम,
अडीकती रही
विरहण गोप्यां
कद सुणीजै
कानूड़ै री टेर
फेर हू’र
आघती
बैठगी ले’र
बैलोवणो,
भेज्या मैं
लिख लिख’ र गीत
पण बै तो
सुरग्यानी
निरथक हा
बारै वासतै
सबद !