भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन (4) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:27, 28 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=लीकल...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कर बो कर
खिर खिण घोचो
मत हूण दै
निसंक
नहीं’स ओ
जलम रो रूळेड़
फिरैलो हांडतो
करैलो आपरी जाणी
घालैलो फोड़ा
जे चावै
ओ चालै गेलै सर
भरतो रह चिंतण रा चंूठिया
उधेड़तो रह इण रा बखिया
जणां मानसी
आंकस
ओ सिर फिरयो !