भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिप्सम के ढेले / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 28 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=रेत रेत धड़क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जेसीबी खोद रही है
जिप्सम के ढेले
रेत के नीचे दबे
जिप्सम को खोद-खोदकर
मिटा दिया जायेगा नामोनिशान रेत का
उड़ जायेंगे टीले
नई मंजिल की ओर
रेगिस्तान बढ़ता नहीं है
बस जगह बदलता है
जमीन का मालिक
ट्रकों में भर देगा बड़े-बड़े ढेले
बिखेर दी जायेगी जिप्सम
उन खेतों में जो सोना उगलते हैं
सोने पर सुहागा बन जायेगा जिप्सम
सिर्फ खेतों में ही सोना नही उगायेगा
बल्कि खोदे जाने से लेकर
खेत मे बिखेरे जाने तक
लगने वाले हर हाथ पर
कुछ न कुछ धर देगा
दातार जिप्सम।