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रेत (1) / अश्वनी शर्मा
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रेत का बगूला
उतना ही ऊंचा उठता है
जितना निर्वात होता है केंद्र में
वैसे ही जैसे
आदमी उतना ही ऊंचा उठता है
जितना शांत होता है अन्दर से