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मैं भी एक सुमन बड़भागी / विमल राजस्थानी
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विश्व-पिता की सृष्टि-वाटिका के-
अनगिनत सुरभित सुमनों में
परिजात के खिले विटप का-
मैं भी एक सुमन बड़ भागी
‘षट रिपु’ अष्ट पाश की आँधी-
से झकझोरा बहुत गया हूँ
मेघ कृपा के रहे बरसते
धूल धुली, नित हुआ नया हूँ
लिपटा रहा सदा सर्जक के चरणों से मनुआ अनुरागी
पारिजात के खिले विटप का मैं भी एक सुमन बड़ भागी
‘मधुविद्या’ का मिला सहारा
कभी न जीती बाजी हारा
‘षोड़स विधि’ की कट्टरता ने-
दिया नाव को सदा सहारा
तूफानों की फली न चालें, क्षमा, त्राहिमाम् कह, माँगी
पारिजात के खिले विटप का मैं भी एक सुमन कड़ भागी