भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग बरसात ने भरे कुछ तो / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 16 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |संग्रह=मैं कहाँ चला गया / नासिर काज़मी }} ...)
रंग बरसात ने भरे कुछ तो
ज़ख़्म दिल के हुए हरे कुछ तो
फुर्सत-ए-बेखुदी1 ग़नीमत है
गर्दिशें हो गयीं परे कुछ तो
कितने शोरीदा-सर2 थे परवाने
शाम होते ही जल मरे कुछ तो
ऐसा मुश्किल नहीं तिरा मिलना
दिल मगर जुस्तजू करे कुछ तो
आओ ‘नासिर’ कोई ग़ज़ल छेड़ें
जी बहल जाएगा अरे कुछ तो