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प्रेम-11 / सुशीला पुरी
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प्रेम में
अगन पाखी उड़ता है
भीतर ही भीतर
भीतर ही
भस्म होते हम
खोजते रहते हैं
अपने हिस्से की मृत्यु
प्रेम के लिए
सिर्फ़ जीवन ही नहीं
मरण भी
उतना ही ज़रूरी है...!