भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सखि रे, साँप छोड़ले साँप-केंचुल हे / भोजपुरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:40, 21 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=थरुहट के ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सखि रे, साँप छोड़ले साँप-केंचुल हे,
सखि रे, ओइसने छोड़ले पिया मोर, भँवरवा विमुख भइले रे।।१।।
बाँस छोड़ले बाँस-कोंपल,
सखि रे, अइसने छोड़ले पियवा मोर, भँवरवा विमुख भइले रे।।२।।