Last modified on 23 दिसम्बर 2013, at 19:48

ज़िन्दगी नाहक़ उदासी भर नहीं / रमेश 'कँवल'

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:48, 23 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ज़िन्दगी नाहक उदासी भर नहीं
हौसलों का शहर बे मंज़र नहीं

बे लिबासी माप है सौंदर्य का
शील, लज्जा, आज का ज़ेवर नहीं

संगिनी मेरी नहीं है यशोधरा
राज्य संरक्षण में उसका घर नहीं

दिल्लगी दिल्ली ने दिलवालों से की
मुल्क में अब कोर्इ भी रहबर नहीं

मुझ को देती है सदा मेरी दुल्हन
कामना निर्वाण की बेहतर नहीं

त्रस्त पाप अपराध से है वसुन्धरा
आँख क्या अब खोलेगा शंकर नहीं

मुझ को भी है वेदना सिद्धार्थ सी
मुक्त चिंता भय से मेरा घर नहीं

मैंने पूछा जाने-मन क्या आओगे
रख दिया फ़ोन उसने ये कहकर ‘नहीं’

तू जुदाल हजा जुदा तेरा 'कंवल'
तेरे तेवर सा कहीं तेवर नहीं