भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी खुशियाँ सभी निसार करूँ / रमेश 'कँवल'
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 23 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अपनी ख़ुशियां सभी निसार करूँ
ज़िन्दगी आ कि तुझसे प्यार करूँ
आदतन तुझ पे ऐतबार करूँ
बे सबब तेरा इन्तज़ार करूँ
तेरी ख़ुशबू से तन-बदन सींचू
अपनी सांसों को ख़ुशगवार करूँ
मुश्किलों को तेरे मैं सहल करूँ
तेरी दुश्वारियों पे वार करूँ
आइना खौफ़ के नगर में है
कैसे मैं सोलह सिंगार करूँ
बे सबब तो नहीं उदास'कंवल'
बे वजह क्यों मैं शर्मसार करूँ