Last modified on 4 जनवरी 2014, at 17:07

ग़म बिछड़ने का नयन सहने लगे / रमेश 'कँवल'

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:07, 4 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ग़म बिछड़ने का नयन सहने लगे
ख़ुशनुमा मंज़र ख़फ़ा रहने लगे

जिस्म की मजबूरियां रौशन हुर्इं
दूरियों की धूप तन सहने लगे

हौसलों के शहर बे मंज़र हुये
आस्थाओं के महल ढहने लगे

मुझ को भाती है गर्इ रूत की महक
उसको अच्छे ख़्रवाब के गहने लगे

आ गया स्पर्श का मौसम 'कंवल’
अनसुने किस्से बदन कहने लगे