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सुगन्धित सोना / गुलाब सिंह

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पाँवों से उजझी पगडण्डी
दूर पड़ाव हुए
वंध्यापन का बोझ न ढोयें
उगे नये अँखुए।

कोने भरी राख की तह में
दबी आग का होना,
कंगाली की कोख
छिपाये हुए सुगन्धित सोना,

आग और सोने के कण को
अब तो कोई छुए।

खेतों के धूसर पन्नों पर
खींचे कुछ रेखाएँ
पर्वत टीले ढाल उतर कर
मेड़ों पर थम जाएँ

देखे सरहद से सिवान के
उड़ते हरे सुए।

तलवों-तले धूल की धड़कन
माथे सूर्य कमल हों
अँजुरी की मिट्टी पर
मेघ सरीखे नयन सजल हों

अंतरिक्ष से धरती के हों
रोज़ सलाम-दुए।