Last modified on 13 जनवरी 2014, at 12:47

बनके प्रेम-घटा / जेन्नी शबनम

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:47, 13 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जेन्नी शबनम |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> 1. म...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1.
मन की पीड़ा
बूँद-बूँद बरसी
बदरी से जा मिली
तुम न आए
साथ मेरे रो पड़ीं
काली घनी घटाएँ !

2.
तुम भी मानो
मानती है दुनिया-
ज़िन्दगी है नसीब
ठोकरें मिलीं
गिर-गिर सँभली
ज़िन्दगी है अजीब !

3.
एक पहेली
उलझनों से भरी
किससे पूछें हल ?
ज़िन्दगी है क्या
पूछ-पूछके हारे
ज़िन्दगी है मुश्किल !

4.
ओ प्रियतम !
बनके प्रेम-घटा
जीवन पे छा जाओ
प्रेम की वर्षा
निरंतर बरसे
जीवन में आ जाओ !

(जुलाई 13, 2012)