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एक हाथ और दूसरा हाथ / वरवर राव

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केरल के तंकमणी गाँव की घटनाओं पर 22.2.1987 के इलेस्ट्रेटिड वीकली में छपे वेणु मेनन के लेख के प्रति आभार सहित


दरवाज़े को लात मार कर खोला है

और घर में घुस कर

जूड़ा पकड़ कर मुझे खींचा है

मारा है । दी हैं गन्दी गालियाँ...

निर्वस्त्र किया है और क्या कहूँ !


छिपाने के लिए अब बचा ही क्या है

मै मुँह खोलूँ ?

उस का अत्याचार

शहद में डूबी मधुमक्खी की तरह

हृदय को सालता जख़्मी कर रहा है मुझे ।


अधिकार के बल से

उसके मुँह में भरी शराब की गन्ध

मेरे चेहरे की घुटन

टूटी चूड़ियों का तल्ख़ अहसास

पेट के भीतर से खींच कर

ख़ून थूकने पर भी नहीं जाता ।


अगर मैं छिपाऊँ यह सब

उसकी पाशविकता को छिपाने जैसा होगा ।


जो भी कहा जाए

यह संसार पवित्र करार दी गई भावना है ।


यह कोई सम्वेदना नहीं

ना ही मानाभिमान की चर्चा है ।


हॄदय और स्वेच्छा पर किया गया

दुराक्रमण है ।


सारी बातें कह डालने पर

और रोने से

हवा में बिखरने वाले पराग की तरह

दिल का बोझ हल्का हो जाता है

और नहीं कहने से

समस्त शरीर को जला देती है वेदना ।


देखती हूँ मनुष्यों को

पति को

बच्चों को

आस-पड़ोस में बसने वाले स्त्री-पुरुषों को

जानती हूँ सभी को

यही मेरे मानवीय सम्बन्धों का तत्त्व है ।


उस रात मेरी आँखों पर

चमगादड़ की तरह झपटी

खाकी अंधेरी जुगुप्सा को...

मनुष्य के आँसू भी नहीं धो सकते ।

शायद प्रतिकार में उबलता हुआ

रक्त ही धोएगा इसे ।

यह सावित्री का अनुभव है

ज़रूरी नहीं,

एलिअम्मा पतिहीन होने पर भी बेसहारा है

ऎसा नहीं है ।

आज यह केरल का तंकमणी गाँव

हो सकता है और

समाचार-पत्रों में अप्रकाशित

गोदावरी के आदिवासियों की

झोपड़ियों का झगड़ा हो सकता है ।


पल्लू पकड़ कर जाती हुई

हाथ को काट लेने वाली

शालिनी को देख कर

यह कहने के लिए इकट्ठे हुए हैं हम

कि नहीं करेंगे अब

किसी से भी

दुश्शासन रूपी अन्धकार को

खंडित करने की प्रार्थना...

यह मिस्समां की पुत्री शालिनी

बन चुकी है हमारे लिए अब स्त्री-साहस का प्रतीक ।