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सच से शायद दूर नहीं ! / उत्‍तमराव क्षीरसागर

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( कुछ अजब बात करते हैं )
  सर्द रातों का
गर्म जादू
दूर - दूर ... बहुत दूर तक
   ( मालूम पडता है )
   जैसे, फैला हो रेत का संसार


समय के कुछ टुकडे
छूटते छटपटाते - से
ज़िंदगी से दूर ... दूर भागते हुए
मि‍टाना चाहते हैं थकान
ढूँढते हैं पानी रेत के जंगल में


इन्‍हीं जंगलों से पहुँचते
हैं कई रास्‍ते
उन गुफाओं तक
     जि‍नसे
नि‍कलकर आ चुके हैं
इन सर्द रातों तक

                   - 1995 ई0